Last Updated on: 21st July 2025, 05:02 pm
रॉकस्टार फ़िल्म की टिकिट मिलना भी एक कहानी है ( Rockstar Film Ticket story)
कैसे …का जवाब देते हुए उसने बताया कि गार्ड ने जैसे ही कहा कि यहाँ एक और लाइन लगा लो तो वो कूदकर लाइन में सबसे पहले जा लगा। टिकिट लेने वालों की भीड़ में नई लाइन का फ़ायदा उठाते हुए शो शुरु होने से आधे घंटे पहले हम पाँचों दोस्त टिकिट पा चुके थे।
चंदन सिनेमा के हॉल में घुसते ही एक रफ सा फ़ील आता है। ‘फ़ेम एडलैब्स’ या ‘फ़न रिपब्लिक’ के सोफ़िस्टिकेटेड कार्पेट्स से अलग एक खुरदुरी सी ज़मीन पे चलते हुए सरकारी सी कुर्सियों पर बैठते हुए लगता है कि हम जेएनयू की किसी फ़िल्म स्क्रीनिंग का हिस्सा हो गए हों। रॉकस्टार जैसी फ़िल्म (Rock Star Film) को देखने के लिये इससे बेहतर माहौल और क्या हो सकता था।
फ़िल्म एक न्यूज़रील सा फील देती सी शुरु होती है जिसमें एक आदमी को विदेशी पुलिस पकड़ रही है, फिर एक रॉकस्टार दिखता है जो स्टेज पर अपने जलवे बिखेर रहा है और फिर पहुंचती है नॉर्थ कैंपस जहाँ कहानी शुरु होती है।
क्या है फ़िल्म रॉकस्टार की कहानी (What is Rockstar film story)
बॉलीवुड की इस फ़िल्म में मुख्य क़िरदार जनार्दन जाकड़ या जॉर्डन (Ranbir Kapoor) जो एक रॉकस्टार बनना चाहता है, जिम मौरिशन की तरह, भरी भीड़ के सामने स्टेज में ‘मिडिल फ़िंगर’ दिखाने को बेताब सा। बस स्टॉप में अपने गिटार की बेसुरी धुनों और बेतुके गानों से लोगों को इरिटेट करता हुआ कि तभी कैंटीन का हैड उसे ब्रह्मज्ञान देता है कि ‘टूटे दिल से ही संगीत निकलता है’।
फिर एक आत्मबोध कि कभी दिल नहीं टूटा, कभी कोई दर्द नहीं मिला, कितनी सीधी-सपाट सी ज़िंदगी। फिर दिल तोड़ने की एक कोशिश और हीर कौल (Nrgis Fakhri) नाम की उस सेंट स्टीफ़ेनियन कश्मीरी, कॉलेज आई केंडी, हाई क्लास लड़की को एक फ़नी सा प्रपोजल- मेरी गर्लफ्रेंड बन जा, हम दोनों रॉक कर देंगे।
लेकिन इस सीन के बाद वो गँवई सा लड़का पूरी फ़िल्म में अकेले रॉक करता रहा पर यकीन मानिये वो कश्मीरी लड़की फ़िल्म के एक भी सीन में कहीं रॉक नहीं कर पाई। जब-जब रहमान की धुनें बजती, जॉर्डन स्टेज पे होता, फ़िल्म देखने लायक होती। लेकिन जहां जहां नर्गिस अपनी स्टिफ़ बॉडी लेंग्वेज और ज़बरदस्ती के एक्सप्रेशन दिखते फ़िल्म का ज़ायक़ा ख़राब कर देते। जो भी जॉर्डन कहना चाहता हीर उसके अल्फाज़ बरबाद कर देती।
एक सीता और गीता के कैरेक्टर से प्रभावित सी लड़की जो शादी से पहले किसी चीप से थिएटर में एक लड़के के साथ बी ग्रेड फ़िल्म तो देख लेती है, पर शादी के बाद अपने पति के घर में उसी लड़के का महज बाई कहने आना उसे नागवार गुजरता है। उसे लगता है कि इस बात से उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी खराब हो जाएगी।
फिर उस लड़की का बोनमैरो उस लड़के की प्रेजैंस से नौर्मली ब्लड सेल्स पैदा करने लगता है। लड़का चला जाता है तो बोन मैरो की प्रोब्लेम फिर शुरु हो जाती है.। एक डाक्टर जो प्रेगनेंसी टेस्ट करने के बजाय उस लड़की की माँ से पूछता है कि सच बताओ लड़की प्रेग्नेंट हैं?
नर्गिस से बहुत कम स्क्रीन प्रेजेंस के बावजूद जर्नलिस्ट शीना का रोल निभा रही अदिति राव हैदरी की एक्टिंग ज्यादा प्रभावशाली लगती हैं। इससे पहले ये साली ज़िन्दगी में अपनी एक्टिंग से छाप छोड़ने वाली अदिति, रॉकस्टार की लीड के लिये कई गुना ज्यादा बेहतर लगती हैं। जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती रही, खिंचती रही, फ़िल्म की कहानी रास्ता भूलती रही और अंत में हमें एक ऐसी यात्रा पर ले गयी जिसका कोई अंत नहीं था।
इम्तियाज़ की ख़राब स्क्रिप्ट को रणबीर और रहमान ने बचाया
इम्तियाज़ अली से इतनी ख़राब स्क्रिप्ट की उम्मीद शायद ही किसी को हो। पूरी फ़िल्म देखने के बाद आप अगर बता दें कि फ़िल्म की कहानी क्या थी तो ये आपकी क्रिएटिविटी की चरम सीमा होगी। एक कहानी जिसमें न कोई फ़्लो होता है, न कोई लौजिक।
पूरी फ़िल्म देखने के बाद लगता है कि शायद फ़िल्म की स्क्रिप्ट शूट करते हुए कहीं खो गई थी और खुद डायरेक्टर साहब भूल गये थे कि कहानी क्या थी। फ़िल्म कई बातों को एक साथ एड्रेस करने की कोशिश में अपना पता खो देती है। ज़बरदस्ती ज़्यादा ही उलझ जाती है। एब्सट्रेक्ट होने की नाकाम कोशिश करती सी।
हालाँकि रणबीर कपूर पूरी फ़िल्म में हर जगह पर फ़िल्म की डूबती किश्ती को अपनी शानदार एक्टिंग की पतवार लिये डूबने से बचाने की कोशिश को बखूबी अंजाम देते हैं। चाहे वो नॉर्थ कैंपस के एक बेशउर, नासमझ और ढ़ीट से लड़के का किरदार हो या फिर निज़ामुददीन दरगाह में ‘कुन फायाकुन’ की धुन में डूबा घर से निकाल दिया गया एक बेचैन मुसाफिर हो।
चाहे स्टेज पे पूरे जोश से गाता एक रॉकस्टार जॉर्डन हो या पत्रकारों को पीटता एक फ़्रस्टेटेड और बेफ़िक्र कलाकार हो। चाहे वो अपनी प्रेमिका से रात को छुपकर मिलने आया एक प्रेमी ही क्यों ना हो, हर रुप में रणबीर कहीं नहीं खले हैं। पूरी फ़िल्म में कुछ देखने लायक है तो वो रणबीर की शानदार एक्टिंग और कुछ सुनने लायक तो रहमान की धुनें।
रणबीर की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग भी अपनी ओर नज़र खींचती है। वैसे जिस फ़िल्म में कहानी नहीं होती तो उसमें म्यूजिक, कॉस्ट्यूम, कास्टिंग, वगैरह-वगैरह पर नज़र खुद-ब-खुद जाने लगती है।
रॉकस्टार में ख़राब कास्टिंग है लेकिन गाने बेहतरीन हैं
रॉकस्टार (Rockstar film) की कास्टिंग फ़िल्म की एक बड़ी कमज़ोर कड़ी है। इंडियन लुकिंग फ़ॉरेन एक्टर्स का ट्रेंड पिछले कुछ समय से इन्डस्ट्री में क्यों आया है, इसकी वजह शायद विदेशी कलाकारों और लोकेशन्स के ज़रिये फ़िल्म को एक्ज़ोटिक सा लुक देकर मल्टीप्लेक्स में फ़िल्में देखने वाली औडियन्स को रिझाने की कोशिश है, लेकिन इसने फ़िल्मों में एक्टिंग का स्तर कम ही हुआ है।
सुनने में आया है कि पहले करीना कपूर, नर्गिस की जगह फीमेल लीड के रोल के लिये चुनी गई थी लेकिन क्योंकि रणबीर और करीना रिश्तेदार हैं और फ़िल्म में कुछ सेंसुअल सीन्स की दरकार थी इसलिये करीना की जगह नर्गिस को लिया गया। जो भी हो इस फैसले ने फ़िल्म को एक अच्छी फ़िल्म बन पाने से रोकने में बड़ी भूमिका अदा की है।
रिवाज़ों से बंधे, तरीके से चलने वाले समाज के खिलाफ एक आज़ाद-खयाल रॉकस्टार की बगावत का कॉन्सेप्ट फ़िल्म में उस गहराई से आ ही नहीं पाया जितना गहरा ये है। उसपे फ़्री तिब्बत और कश्मीर की आज़ादी का मुददा एक मोंटाज़ के ज़रिए ज़बरदस्ती ठूसने की कोशिश बेहद बचकानी लगती है।
ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले आई पंकज कपूर की फ़िल्म ‘मौसम’ में एक साथ बाबरी मस्ज़िद ध्वंश, नाइन इलैवन अटैक, कार्गिल युद्ध, गोधरा नरसंहार, सबकुछ ठूस देने की नाकाम कोशिश की गई थी।
रॉकस्टार पर दर्शकों की रोचक टिप्पणी
हॉल से निकलने के बाद कुछ ठगा ठगा सा महसूस करते हुए कुछ रोचक कमेंट्स सुनने को मिले। मेरे एक दोस्त ने कहा कि इम्तियाज़ अली को रणबीर कपूर से माफी मांगनी चाहिये। एक और दोस्त का कहना था कि फ़िल्म के एक दृश्य में उल्टी को जितने क्रिएटिव तरीके से दिखाया गया था वो काबिले तारीफ था।
दो अजनबी औरतों को उनके पास से गुजरते हुए कहते सुना- “I loved Ranbir’s Passion for something”। वो ‘समथिंग’ क्या था अगर फ़िल्म इस बात को बता पाने में कामयाब हो जाती तो शायद रॉकस्टार आज के वक्त की बेहतरीन फ़िल्मों में से होती। पर अफसोस कि ये हो न सका।
फ़िल्म देखने के बाद ‘जब वी मैट’ जैसी अच्छी और सरल फ़िल्म बनाने वाले इम्तियाज़ अली से इतना ही कहा जा सकता है कि ‘नादान परिंदे घर आजा’। खैर रॉकस्टार देखने के बाद घर लौटे तो रणबीर और रहमान दो ही चीजें दिमाग में छाई थी। नेट से रॉकस्टार के गानों की जिप-फ़ाइल डाउनलोड कर ली गई है और रॉकस्टार के गाने स्पीकर की ऊँची आवाज़ के ज़रिये इरशाद कामिल की लिखाई को सलाम करते कानों से दिल में कहीं गहरे उतर रहे हैं।
Thank you so much… bahut sundar… Ranbir, Nizamuddin Dargah, Rehman, aur Irshaad….
Jai ho !
Umesh pant's posts are awesome… worth relishing…… you are a long runner dude… great…. -Pranav Joshi…
shayad ab hume paki pakai films dekhne ke adat se ho gae hai..filmo ke mamle me koi dimagi kasrat karna he nhi cahata hai…