राजस्थान में है शादी से पहले ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ करने की ये कुप्रथा

Last Updated on: 4th July 2025, 12:46 pm

माई सेक्रेड ग्लास बाउल प्रिया थुवत्सरी की एक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म है जो राजस्थान में शादी से पहले ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ (virginity test before marriage ) करने कुप्रथा के बारे में बताती है।

‘माई सेक्रेड ग्लास बाउल’ नाम की इस फ़िल्म में ‘ग्लास बाउल’ का जो खूबसूरत प्रतीक प्रिया अपनी फिल्म में गढ़ती हैं उसका सीधा सा अर्थ यही है कि लड़कियों को हमेशा ये सिखाया जाता है कि उनके पास एक ऐसी चीज़ है जिसे उन्हें सुरक्षित रखना है। सुरक्षा का यही भाव उन्हें एक खास उम्र के बाद डरकर रहने को मजबूर कर देता है।

वो तबतक खुलकर नहीं जी पाएंगी जबतक उनके मन में इस ग्लास बाउल को बचाकर रखने का दबाव बना रहेगा। जबतक उनके चरित्र को प्रमाणपत्र देने के लिये एक ऐसे भेदभावपूर्ण शब्द का सहारा लिया जाएगा जिसे हम वर्जिनिटी कहते हैं। प्रिया की फिल्म वर्जिनिटी से जुड़ी रुढि़यों को तोड़ने की एक कलात्मक कोशिश है।  


सफ़ेद कपड़े से की जाती है वर्जिनिटी की जाँच (virginity test before marriage)

उस रात वो अपने अन्तवस्त्र (Undergarments) के रुप में सफेद कपड़ा पहनती है। कपड़ा अगर पूरी तरह लाल हो जाये जो वो ‘सही’ निकलती है, वरना ‘ख़राब’। वहां की हर मां यही चाहती है कि वो ‘ख़राब’ न निकले। क्योंकि ये सवाल केवल उसके कल का ही नहीं है उनकी नाक का भी है। और अपने यहां भी जब वो पैसा लगाकर उसे लाते हैं तो वो कतई नहीं चाहते कि वो खराब निकले। अगर वो ‘ख़राब’ निकली तो वो उसे वापस कर आते हैं।

अटपटा होने के बावजूद भी सच यही है कि यहां बात बाज़ार से लाये गये किसी सामान की नहीं हो रही, उस लड़की की हो रही है जिसकी शादी होनी है, हो रही है या हो गई है। ये सफेद कपड़ा अगर उस रात लाल न हुआ तो उसकी जिन्दगी में फिर सबकुछ काला हो जायेगा। इसलिये उसे वो एक चीज़ सम्भाल के रखनी है जिसे लोग आमतौर पर वर्जिनिटी (Virginity) कहते हैं और फिल्मकार प्रिया थुवत्सरी जिसे सांकेतिक रुप में कहती हैं- सेक्रेड ग्लास बाउल।


राजस्थान के गाँवों में है यह रिवाज़

सेक्रेड ग्लास बाउल में जयपुर के एक गांव की मां जब अपने यहां मौजूद इस रिवाज़ के बारे में बताती हैं तो सम्भव है कि कई आंखें शर्म से झुक जाएं, कई दिल पसीज जाएं। लेकिन वहां ये एक पूरे परिवार की नाक का मसला है। इससे उस समाज की इज्ज़त जुड़ी है। ये सुनकर ‘इज्ज़त’ शब्द भले ही आपको कितना ही खोखला लगे लेकिन भारतीय समाज का एक सच ये भी है। इसी सच की पड़ताल है ‘सेक्रेड ग्लास बाउल’।

प्रिया की पहली फिल्म होने के बावजूद फिल्म न केवल कथानक बल्कि अपने एस्थेटिक्स के लिहाज से भी खूबसूरत है। एक कड़वी सच्चाई कहने के लिये भी आप सिनेमा को कलात्मक रुप से कैसे प्रयोग कर सकते हैं सेक्रेड ग्लास बाउल इसकी बानगी है।

चेस्टिटी टेस्ट ये एक ऐसा टर्म है जिसे सुनते ही हमारे समाज में परुषसत्ता किस हद तक व्याप्त है इसकी तहें खुल जाती हैं। शादी के बाद एक औरत को ही क्यों साबित करना पड़ता है कि उसने इससे पहले किसी के साथ सेक्स नहीं किया। एक पुरुष से ये क्यों नहीं पूछा जाता कि वो वर्जिन है कि नहीं।

या फिर इस सवाल को दूसरे पर्सपेक्टिव से देखा जाये तो ये ज़रुरी ही क्यों है कि ये जाना भी जाये कि शादी से पहले लड़का या लड़की के किसी विपरीत लिंग से शारीरिक संबंध रहे हैं कि नहीं। खैर औरत से किये जाने वाले वर्जिनिटी से जुड़े इन सवालों को अक्सर समाज के पिछड़ेपन के साथ देखा जाता है। पर क्या सचमुच ऐसा है ?


आई फील लाइक अ वर्जिन जैसे विज्ञापन

इस सवाल की पड़ताल करते हुए आपको किसी निष्कर्ष पर पहुंचना है तो आप उस विज्ञापन को देखिये जो पिछड़े नहीं बल्कि नई सदी के भारत की देन है। भारत में कुछ समय पहले यह विज्ञापन बहुत चर्चा में रहा। वेजिनल टाइटनिंग क्रीम जिसका नाम है 18 अगेन।

उस विज्ञापन में जिस तरह साड़ी पहनी महिला नाचते हुए कहती है – आई फील लाइक अ वर्जिन, उसे देखकर एकबारगी आपको लग सकता है कि इस उत्पाद का महिलाओं के फील करने से कोई सम्बन्ध है लेकिन सच आप भी जानते हैं।

उसी विज्ञापन का दूसरा हिस्सा देखिये जिसमें महिला सास और ससुर के सामने ही इस बात की खुशी जाहिर कर रही है कि वो वर्जिन जैसा फील कर रही है। सास पहले तो ये देखके थोड़ा सकपकाती है लेकिन जब वो देखती है कि ये देखके उसका बूढ़ा पति खुश हो गया है तो वो भी खुश होती है और फिर दोनों बुजुर्गवार भी कम्प्यूटर के सामने बैठकर उस क्रीम को ऑर्डर करने लगते हैं।

भारत जैसे देश में ये विज्ञापन किस शर्त पर आ सकता है ? इसके पीछे क्या मानसिकता हो सकती है ? और उससे बढ़कर ये कि ऐसे किसी क्रीम का इस्तेमाल असल अर्थाें में हमारे सामाजिक सन्दर्भ में कैसे फिट होता है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं प्रिया अपनी फिल्म में जिनका उत्तर देने की कोशिश करती हैं।


बाज़ार में धड़ल्ले से बिक रहे हैं चेस्टिटी टेस्ट से जुड़े उत्पाद (Virginity test products in Markets)

एक ऐसे देश में जहां वर्जिनिटी को महिलाओं के पाक-साफ या फिर प्रिया की फिल्म के एक किरदार की भाषा में कहें तो सही होने से देखा जाता है वहां यह विज्ञापन किसके हित साधता है वो आप खुद ही समझ सकते हैं। ये वर्जिन की तरह फील होना दरअसल बाज़ार की उसी मानसिकता से आता है जो स्त्रियों को पुरुष को रिझाने के लिये तरह तरह के उत्पाद बेचने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है।

ये बाज़ार जहां वेस्ट में अप्राकृतिक तरीके से महिलाओं को सेक्सुअल प्लेज़र देने वाले उत्पाद बेचता है वहीं भारत आते-आते वो अप्राकृतिक तरीके से उनके जननांगों के साथ छेड़छाड़ करने की हद तक इसलिये चला जाता है क्योंकि वो ये जानता है कि भारत में ये महिलाओं की ज़रुरत से कही ज्यादा पुरुषों की नाक का मामला है।

हांलाकि विज्ञापन में आयये फ्रेज़ ‘नाव इन इन्डिया’ से ये साफ है कि भारत को पिछड़ा कहने वाले वेस्ट में ये क्रीम पहले से ही प्रयोग हो रहा है। पर नाव इन इन्डिया ? क्यों ? क्योंकि भारत में वर्जिनिटी खोने की औसत उम्र जो 2006 में 23 साल थी वो 2011 में करीब 19 साल तक आ गई ? और आने वाले समय में ये हो सकता है कि वर्जिन महिलाएं विलुप्तप्राय प्राणी हो जायें।

उस देश में जहां किसानों की आत्महत्या को देश के जिम्मेदार मंत्री उनके प्रेम संबंधों से जोड़ने का हुनर रखते हैं वहां महिलाओं के वर्जिनिटी खोने को उनके बदचलन होने से नहीं जोड़ा जायेगा ये आप सोच भी कैसे सकते हैं। हां पुरुषों की वर्जिनिटी के बारे में हमारा भद्र देश ऐसे कोई सवाल खड़ा नहीं करता। पुरुष के पास तो बस नाक होती है वेजाइना नहीं।


पुरुषों की चेस्टिटी पर क्यों नहीं होता सवाल? (No Question on male chastity)

सेक्रेड ग्लास बाउल का विस्तार दिल्ली के बटलाहाउस से लेकर जयपुर के एक छोटे से गांव तक है। बटला हाउस की रुखसाना तलत जो दो बेटियों की मां हैं वो एक जगह एक वाजिब सवाल उठाती हैं कि लोग हमेशा एक लड़की की चेस्टिटी की बात करते हैं, लड़के के बारे में कोई कभी बात नहीं करता।

दरअसल असल बात यही है कि जिस दिन इस देश में पुरुषों की चेस्टिटी पर सवाल उठने लगेगा उसदिन चेस्टिटी का यह सवाल ही बेमायने हो जायेगा। क्योंकि ये सवाल ही दरअसल हमारे देश के सामजिक ताने-बाने में बुने गये कई गैरज़रुरी मूल्यों के धागे से जुड़ा है जिनकी सीवन को उधेड़ने पर समाज में पुरुषसत्ता के उधड़ जाने का खतरा पैदा हो जाएगा।

और यह न हमारा समाज चाहता है न ही यह बाज़ार। फेयरनेस, ग्लाॅसी लिप्स, शाइनी हेयर्स, स्मूद स्किन ये सारे टर्म बाज़ार में कहीं न कहीं उस मानसिकता से आते हैं जिसका भरोसा महिलाओं की ज़रुरत से कहीं ज्यादा मेल गेज को सेटिस्फाई करने में ज्यादा होता है।


प्रिया सेक्रेड ग्लास बाउल का जो खूबसूरत प्रतीक अपनी फिल्म में गढ़ती हैं उसका सीधा सा अर्थ यही है कि लड़कियों को हमेशा ये सिखाया जाता है कि उनके पास एक ऐसी चीज़ है जिसे उन्हें सुरक्षित रखना है। सुरक्षा का यही भाव उन्हें एक खास उम्र के बाद डरकर रहने को मजबूर कर देता है।

वो तबतक खुलकर नहीं जी पाएंगी जबतक उनके मन में इस ग्लास बाउल को बचाकर रखने का दबाव बना रहेगा। जबतक उनके चरित्र को प्रमाणपत्र देने के लिये एक ऐसे भेदभावपूर्ण शब्द का सहारा लिया जाएगा जिसे हम वर्जिनिटी (Virginity test) कहते हैं। प्रिया की फिल्म इस शब्द से जुड़ी रुढि़यों को तोड़ने की एक कलात्मक कोशिश है।

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