एक ईमानदारी से बोले गये झूठ की ‘कहानी’ – Kahaani Movie

Still from Kahaani Movie by Sujoy Ghosh

Last Updated on: 21st July 2025, 03:55 pm

‘कहानी’ (Kahaani Movie) के ट्रेलर देखकर लग रहा था कि कोई रोने धोने वाली फ़िल्म होगी, जिसमें शायद कलकत्ते को लेकर नॉस्टेल्जिया जैसा कुछ होगा, शायद एक पीड़ित प्रेग्नेंट औरत होगी जो अपने अधिकारों के लिये लड़ रही होगी या शायद नो वन किल्ड जैसिका जैसा ही कुछ, पर फ़िल्म देखने के बाद अच्छा लगा कि कुछ नया देखने को मिला। प्रिडिक्टिबिलिटी से परे, बॉलीवुड के मौजूदा परिदृश्य में जिस तरह फ़िल्मों से बासीपन की बू आ रही थी, उसके बीच एक ताजी हवा सी लगी ये कहानी।

कहानी को देखते हुए हर वक्त आगे क्या होगा वाली भावनाएं ज़ेहन में बनी रही। ये कहानी आपको चुपचाप बैठे नहीं रहने देती,  बीच बीच में ऐसे झटके देती है, जो फ़िल्म देखने के आपके अनुभव को बार बार रिफ़्रेश करते हैं।

क्या है फ़िल्म कहानी की कहानी (Kahaani Movie Story)

एक लैबोरेटरी में एक चूहे को लिक्विड नर्व गैस सुँघाकर मारा जा रहा है और फिर कुछ देर में कलकत्ते की मैट्रो में उसी लिक्विड गैस के जरिये सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है. मैट्रो के कोच में पड़ी बीसियों लोगों की डैड बॉडीज पहला झटका देती हैं। यहीं से फ़िल्म प्रोमिसिंग नज़र आने लगती है।

लेकिन इसके बाद कुछ तकनीकी रुप से ख़राब शॉट्स और बुरी एडिटिंग का नज़ारा देखने को मिलता है। थोड़ी निराशा होने लगती है, पर इसके बावजूद कसी हुई स्क्रिप्ट फिर से बाँधने लगती है।

लंदन से एक प्रेग्नेंट औरत ‘बिद्दा बाक्ची’ माफ कीजिये विद्या बाक्ची (Vidya Balan) कलकत्ते पहुँचती है, अपने खोए हुए पति को ढूंढ़ते हुए। अपनी इस खोज में वो एक पुलिस ऑफिसर इंस्पेक्टर सत्याकी सिन्हा उर्फ़ राणा (Parambrata Chattopadhyay) को शामिल करती है, एक कांट्रैक्ट किलर बॉब बिस्वास (Saswata Chatterjee) उसकी इस खोज का दुश्मन हो जाता है।

दूसरा झटका तब लगता है जब इन्टरमिशन से ठीक पहले ये काँट्रेक्ट किलर बौब, मैट्रो ट्रेक में चलती ट्रेन के आगे विद्या को धक्का दे देता है। टीवी न्यूज चैनलों की तरह ब्रेक से ठीक पहले लोगों को धोखा देकर फ़िल्म इन्टरमिशन में सीट पर बैठे या पॉपकॉर्न खरीदने गये या फिर हल्के होने गये दर्शकों को सेकंड हाफ़ का बेसब्री से इंतज़ार करवाती है।

ब्रेक के तुरन्त बाद बिद्दा बाक्ची को सुरक्षित देखकर थोड़ी राहत मिलती है, हालाँकि ये मामला पूरी तरह प्रिडिक्टेबल ही है, दर्शक सरप्राइज़ तो नहीं होता पर कुछ देर के लिये एक हल्का झटका लगता है, क्योंकि फ़िल्म अब तक आपको सस्पेंस वाले फील में तर कर चुकी होती है, आपकी उम्मीद बढ़ा चुकी होती है।

फिर इन्टरमिशन के कुछ देर बाद तक वो औरत दर्शकों की आंखों में धूल झोंकती है। बहुत बाद में आपको पता चलता है कि आप जैसा समझ रहे थे वैसा तो कुछ है ही नहीं, असल कहानी तो कुछ और ही है।

फ़िल्म झूठ पर झूठ बोलकर दर्शकों को मोह लेती है, ये कहानी एक ईमानदारी से बोले गये झूट की कहानी नज़र आने लगती है, जहाँ पहले पुलिस एक शातिर अपराधी को पकड़ने के लिये विद्दा बाक्ची से झूट बोलकर उसे मोहरा बनाती है, क्योंकि पुलिस को लगता है कि एक प्रेगनेंट औरत पर कोई शक नहीं कर सकता और फिर पता चलता है कि दरअसल बिद्दा बाक्ची नाम की ये औरत खुद पुलिस को मोहरा बना चुकी होती है क्योंकि उसका अपना लौजिक भी यही है कि एक प्रेगनेंट औरत पे कोई शक नहीं कर सकता।

कहानी में विद्या बालन का बेमिसाल अभिनय  (Vidhya Balan in Kahaani Movie)

विद्या बालन ने इस फ़िल्म के बाद ये साबित कर दिया है कि बॉलीवुड में उनकी जगह इरफान ख़ान के समानान्तर है, ऐसी जगह जहाँ पर दूर-दूर तक दूसरा कोई खड़ा नहीं दिखाई देता। वो ‘डर्टी’ होकर भी बेस्ट हैं और उस डर्ट के बिना भी। उनकी अदाकारी में वो बात है, जिसके सामने परफ़ेक्ट फ़िगर, ग्लैमर और लुक्स जैसे सारे कॉन्सेप्ट्स पानी भरते नज़र आते हैं। बॉलीवुड के दर्शकों को इरफ़ान और विद्या बालन दोनों का शुक्रगुजार होना चाहिये कि उन्होंने स्टारडम के दिखावे को चेतावनी देते हुए एक्टिंग जैसी चीज़ पर उनका भरोसा फिर से कायम होने का मौका दिया है।

कहानी की पूरी कहानी में कुछ भी नया नहीं है, बल्कि वही सब है जो आप शायद जासूसी उपन्यासों में पहले भी कभी पढ़ चुके हों, पर उस कहानी के कहनेपन में नई बात ज़रुर है। मसलन फ़िल्म में कलकत्ता स्टीरियोटिपिकल तरीके से किसी महानगर की तरह नहीं आता, बल्कि संकरी गलियां, पुराने मकान, चाय के नुक्कड़, ये सब देखके शहर को किसी गाँव की तरह जीने सा मज़ा आता है। हौट रनिंग वाटर देने वाला मुस्कुराता छोटू, गुड आफ़्टरनून के जवाब में जैसा आप बोलें कहने वाला रिसेप्शनिस्ट और इन छोटे छोटे लमहों और किरदारों के जरिये अपनी मासूमियत में गुदगुदाते रहने वाली बंगालियत, फ़िल्म से दर्शकों को सीधा जोड़ देती है।

कहानी शायद इसलिये थोड़ा मासी सी लगती है क्योंकि उसके सस्पेंस में ज्यादा इंटेलीजेंस नहीं है। उसे समझने के लिये कोई ज्यादा दिमाग लगाने की ज़रुरत नहीं है। फ़िल्म कहती है कि ऐसा हुआ है और एक बार में किसी भी दर्शक को ये समझ आ जाता है कि ओह अच्छा ऐसा हुआ है। बॉलीवुड की फ़िल्मों में सस्पेंस और थ्रिलर वाले ज्यादा प्रयोग देखने में नहीं आते। ये जौनर एक हद तक अनछुआ सा लगता है।

डबल इन्डेम्निटी, ब्रेथलेस या फिर रेयर विन्डो जैसा कुछ जो विदेशी सिनेमा में बहुत पहले बन चुका है बॉलीवुड आज भी उसके लिये अच्छी तरह तैयार नहीं है, कहानी को उस जौनर में संभल-संभल कर कदम रखने की एक अच्छी कोशिश की तरह भी देखा जा सकता है।

सुजौय घोष की फ़िल्म जो देती है बॉलीवुड को सबक (Kahaani Movie by Sujoy Ghosh)

पान सिंह तोमर और पीपली लाईव में अपनी अदाकारी की झलकियां दिखाने के बाद एक इंटेलीजेंस ऑफ़िसर मिस्टर ख़ान के रुप में Nawazuddin Siddiqui इस फ़िल्म में न केवल बहुत ज़्यादा प्रभावित करते हैं, बल्कि एक अलग पायदान पर खड़े नज़र आते हैं।

परमब्रत और विद्या के मासूम से एकतरफा प्रेमप्रसंग के बीच कई ऐसे दृश्य आते हैं जब लगता है कि निर्देशक साहब ने दर्शकों को बड़े हल्के में ले लिया है। विद्या की हेयर क्लिप से हरिसन टाईप मजबूत तालों का बार-बार बड़ी आसानी से खुल जाना, अचानक से विद्या का कम्प्यूटर हैकिंग में पारंगत हो जाना, वगैरह वगैरह।  फ़िल्म कुछ जगहों पर स्पूनफीड भी करती है पर हास्यास्पद कहीं नहीं लगती।

फ़िल्म के अन्त में अमिताभ बच्चन का माँ दुर्गा पर दिया गया भाषण-नुमा वॉइसओवर गैरज़रुरी सा लगता है। पर उनका गाया गया एकला चलो रे उनकी आवाज़ पर फबता ज़रूर है।

सुजौय घोष की इस फ़िल्म को सस्पेंस और थ्रिलर जौनर में बॉलीवुड के लिये माइलस्टोन तो नहीं कहा जा सकता पर हाँ ये फ़िल्म, फ़िल्मकारों को इतना अहसास तो ज़रुर दिलायेगी कि मैलोड्रामा और फ़ॉर्मूला फ़िल्मों से अलग इस जौनर में बनी फ़िल्में भी दर्शकों के द्वारा सराही जा सकती हैं।

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