Last Updated on: 8th July 2025, 09:30 am
एक उनींदी सी रात के दो बजे जब तय हो गया कि आज नींद नहीं ही आयेगी तो अपने फ़िल्मों के कलेक्शन पे गौर किया। रात काटने का ये एक बेहतरीन विकल्प मालूम हुआ। ब्लू वेल्वेट (Blue Velvet Movie)। डेविड लिंच (David Linch) की ये फ़िल्म किसी तरह छूट गई थी। सोचा देखी जाये। देखने के बाद लगा कि इसे देखने का इससे बेहतर वक्त शायद कोई और नहीं हो सकता था।
एक विचित्र सा साइकॉटिक संसार
अगर आपने अल्फ्रेड हिचकौक (Alfred Hitchcock) की फ़िल्म साईको (Phycho) देखी हो और आपको उस जौनर की फ़िल्में पसंद हों तो तो ब्लू वेल्वेट आपके लिये ही बनी है। एक अजीब सा साईकोटिक संसार जहां जी रहे कैरेक्टर्स को उनकी विचित्र मेंटल स्टेट बेहद वियर्ड तरीके से बिहेव करने के लिये मजबूर कर देती है।
वो आपके या हमारे जैसे लोगों की तरह मामूली बर्ताव नहीं करते। वो एक्स्ट्रीम वाली स्थिति है जहां कोई इसलिये इतना विचित्र हो जाता कि या तो वो निहायत मजबूर हो गया है या इसलिये कि वो निहायत क्रूर हो गया है। वर्ल्ड सिनेमा में ‘फ़िल्म नोआर’ एक पूरा दौर रहा है। उस दौर में ऐसी कई फ़िल्में बनी जिसके किरदार या गैंगस्टर थे या फिर साईकोटिक। या फिर दोनों ही।
ये चरित्रों के भीतर के काले गहरे ग्रे शेडस उभारने वाली फ़िल्में थी। नेगेटिव करेक्टर्स इन फ़िल्मों में बड़ी अहमियत रखते थे। टैक्सी ड्राईवर, डबल इन्डेम्निटी, टच औफ इविल, सिटीजन केन, वर्टिगो, साईको जैसी कई फ़िल्में इस दौर में बनी।
इन सारी फ़िल्मों के चरित्र कहीं न कहीं साइकॉटिकक थे। इन फ़िल्मों में सिंबोलिज़्म बड़ी अहम भूमिका निभाता था। फ़ेम फेटेल यानि नकारात्मक महिला किरदार इन फ़िल्मों में अहम भूमिका में रहती थी। डेविड लिंच की इस फ़िल्म को भी उसी श्रेणी में रखा जाता है।
क्या है ब्लू वेल्वेट की कहानी
एक कॉलेज स्टूडेंट जैफ़री (Kyle MacLachlan) को ल्यूम्बर्टन नाम के एक छोटे से कस्बे के अपने घर के पास के खेतों में एक आदमी का कान गिरा हुआ मिलता है। इसी खेत में कुछ समय पहले उसके पिता को एक अटेक आया था और वो बीमार हो गये थे। इस कान को लेकर वो एक डिटेक्टिव के पास जाता है ताकि इसके बारे में जांच पड़ताल की जा सके।
दूसरे दिन डिटेक्टिव विलियम्स (George Dickerson) की बेटी सेंडी से उसकी मुलाकात होती है और वो उसको अपने पिता से मिलने वाली कुछ ख़ुफ़िया जानकारियां देने का वादा करती है। वो उसे उसके पड़ौस में मौजूद एक घर के बारे में बताती है जहां एक विचित्र औरत रहती है। जैफ़री सैंडी की मदद से उस औरत के बारे में पता लगाने का फैसला करता है। वो पेस्ट कंट्रोल वाला आदमी बनकर उसके घर में घुसता है लेकिन पहले दिन वो कुछ खास जानकारी हासिल नहीं कर पाता पर वहां से एक चाबी चुरा लेता है।
दूसरे दिन वो चुपचाप उस कमरे में घुसता है। कुछ खोज ही रहा होता है कि उस घर में अकेले रहने वाली एक सिंगर डॉर्थी (Isabella Rossellini) अपने घर लौटती है। वो एक कबर्ड में छुप जाता है और उसे कपड़े बदलते हुए बिल्कुल नग्न अवस्था में देखता है। डॉर्थी सोने को होती है कि उसे कबर्ड में हलचल सुनाई देती है। वो चाकू लेकर कबर्ड का दरवाजा खोलती है और जैफ़री पकड़ा जाता है। वो जैफ़री से पूछती है कि उसने क्या देखा। जैफ़री बताता है।
वो जैफ़री से पूरे कपड़े उतारने के लिये कहती है और चाकू की नोक पर उसके साथ शारीरिक सम्बंध बनाती है। पर जैफ़री को खुद का स्पर्श भी नहीं करने देती। तभी दरवाजे पर दस्तक होती है। वो जैफ़री से कबर्ड में छुप जाने के लिए कहती है। वो दरवाजे के पीछे से एक आदमी को कमरे में आते देखता है और वहां उसके सामने खुलती है एक बेहद विचित्र और डरावनी दुनिया।
अंडरवर्ल्ड डॉन और प्रताड़ित डॉर्थी
वो देखता है कि डॉर्थी नामकी ये खूबसूरत गायिका जो अब तक उसके साथ जबरदस्ती कर रही थी निर्ममता की किस हद तक इस कमरे के अन्दर फ़्रैंक (Dennis Hopper) नाम के उस अन्डरवर्ल्ड डॉन से प्रताड़ित हो रही है।
फ़्रैंक एक सायकॉटिक करैक्टर है जिसे डॉर्थी को एक खास तरह से प्रताड़ित करने में मज़ा आता है। अपने चेहरे पे मास्क लगाकर और डॉर्थी के मुंह में कपड़ा ठूंसकर वो उसके साथ ज़बरदस्ती करता है। डॉर्थी असहाय है। बिल्कुल लाचार। एकदम कमजोर। जैफ़री ये सब देखके डॉर्थी के लिये सहानुभूति से भर जाता है। जैसे ही फ़्रैंक वापस जाता है जैफ़री कबर्ड से बाहर निकलता है।
वो बिल्कुल टूट चुकी सी डॉर्थी को हमदर्दी देता है। डॉर्थी को इस हमदर्दी की बहुत जरुरत है क्योंकि फ़्रैंक उसके साथ एक जानवर सा व्यवहार करता है। जैफ़री फिर इस घर में रोज आना शुरु करता है। वो रोज फ़्रैंक को उसके साथ जानवरों सा व्यवहार करते देखता है। एक दिन फ़्रैंक उसे देख लेता है और उसे पकड़कर अपने गुंडों के साथ अपने अड्डों पे ले जाता है।
यहां जैफ़री को पता चलता है कि फ़्रैंक एक अन्डरवर्ड से जुड़ा शातिर अपराधी है। वो उसके बेहद असामान्य दोस्तों से रुबरु होता है। फ़्रैंक अपने दोस्तों के सामने ही कार के अन्दर फिर अपने वहशियाना अंदाज़ में डॉर्थी को प्रताड़ित करने लगता है। इस बार जैफ़री उसका विरोध करता है। फ़्रैंक अपने गुडों की मदद से उसको बुरी तरह पीटता है। वो बदहवाश हो जाता है।
सेंडी को पता लगता है कि जैफ़री और डॉर्थी के बीच किसी तरह का रिश्ता पनप रहा है। इस रिश्ते की गंध उसे अच्छी नहीं लगती। एक दिन सेंडी और जैफ़री अपनी कार में कहीं जा रहे हैं। दूसरी कार उनका पीछा करती है। उससे कुछ लड़के बाहर निकलते हैं और एक महिला को जैफ़री के सुपुर्द करते हैं। ये महिला डॉर्थी है। जो बिल्कुल नग्न अवस्था में है। बिल्कुल बदहवास सी।
उसके साथ फिर बुरी तरह से मारपीट की गई और उसे रास्ते में कहीं फेंक दिया गया। जैफ़री को अपने पास पाते ही वो उससे लिपट जाती है। जैसे उसकी समीपता उसकी जिन्दगी की केवल और केवल उम्मीद हो। वो उसे लेकर सेंडी के घर में जाते हैं। और फिर उसी कान के एक क्लोज़अप के साथ फ़िल्म समाप्त हो जाती है जो कान जैफ़री को फ़िल्म की शुरुआत में मिलता है।
विकृत सी मनोवैज्ञानिक दुनिया में ले जाती फ़िल्म
डेविड लिंच की इस फ़िल्म में न्यूडिटी तो है लेकिन उसे देखके एक अजीब सा सेंसेशन होता है। ऐसा सेंसेशन जो लस्ट के बिल्कुल करीब नहीं है। मानव स्वभाव के बेहद अंधेरे कोनों से ये फ़िल्म रुबरु कराती है। विकृत सी मनोवैज्ञानिक दुनिया में ले जाती है। एक खास किस्म का थ्रिल आपके अन्दर बहने लगता है। डेविड लिंच की ये फ़िल्म एब्सट्रेक्ट होने के बेहद करीब है।
ऐसी फ़िल्मों को देखने के तुरंत बाद एक बेहद नकारात्मक किस्म का अहसास होने लगता है। उस खास किस्म की विकृत दुनिया के लिये घृणा पैदा होने लगती है। ऐसी फ़िल्में बेचैन करने लगती हैं। विश्व सिनेमा के एक पूरे दौर में ऐसी फ़िल्में बनी हैं। जिससे एक बात बेहद साफ हो जाती है कि हमारे आम जनजीवन के इर्द-गिर्द या उसके बीच ही कहीं एक ऐसी विकृत दुनिया रहती है जहां पीड़ित करने और पीड़ा सहने की हदें पार होती हैं। फ़िल्म नोआर के दौर की ये फ़िल्में उसी दुनिया की उपज हैं।
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यार संयोग है कि कल ही मैंने भी यह फिल्म देखी है। उसके बाद तुम्हारे ब्लॉग पर समीक्षा पढ़ रहा हूं। अच्छा लिखा है। अपने बलॅग पर भी लगा रहा हूं में ये समीक्षा।