युद्व के उन्माद और क्रूरता की भयावह कहानी है सोल्जर ब्लू – Soldier Blue Movie review

A still from Soldier blue Movie

Last Updated on: 13th July 2025, 08:19 am

युद्व का उन्माद कितना विभत्स, कितना भयावह और अमानवीय हो सकता है यह Ralph Nelson निर्देशित फ़िल्म सोल्जर ब्लू (Soldier Blue Movie) में देखा जा सकता है। ये एक अमेरिकी फ़िल्म है। इतिहास में झाँकती, जंग के मैदान में ले जाती और उस मनःस्थिति से रुबरु कराती जो एक आदमी को निहायत जंगली बना देने पर उतारु कर देती है। जो एक सभ्यता के असभ्य हो जाने की अन्तिम सीमा तक पहुंचने की यात्रा दिखाती है।

फलतः आदमी के अमानवीय हो जाने की दर्दनाक सच्चाई को खुलकर अपने नग्न रुप में हम तक पहुंचाती है और कुछ सवाल छोड़ जाती है कि क्या यह सब सच भी हो सकता है? इन्सान क्या इतना निर्मम हो सकता है।

उदाहरण के तौर पर राहुल सांस्कृत्यायन ने जब वोल्गा से गंगा लिखी तो सवाल ज़हन में आता है कि क्या उसकी पूरी शाब्दिक यात्रा महज काल्पनिक ही रही होगी? लेकिन इतिहास ही नहीं वर्तमान भी इस पूरी निर्मम कहानी का साक्षी रहा है। वोल्गा से गंगा मेेें एक औरत अपने नवजात बच्चे को पटक कर फेंक देती है उसके खून से सने लोथड़ों को देख उसे कतई दुख नहीं होता। उसे लड़ना है। खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए। खुद के कबीले को ज़िंदा रखने के लिए।

इस किताब को पढ़ते हुए लगता है कि यह सब एक कल्पना है जिसकी नृशंसता का सच्चाई से कोई लेना-देना हो ही नहीं सकता। लेकिन फिर ‘सोल्जर्स ब्लू’ जैसी फ़िल्में हमें देखने को मिलती हैं। जिनका नरसंहार पूरी तरह ऐतिहासिक सच्चाईयों पर आधारित है। जिसका उद्देश्य एक ऐतिहासिक नरसंहार को आधार बनाकर एक तत्कालीन नरसंहार (वियतनाम युद्ध) पर सिनेमाई टिप्पणी करना है।

 

क्या है सोल्जर ब्लू की कहानी के पीछे ऐतिहासिक घटना (Story that inspired Soildier Blue movie)

फ़िल्म सोल्जर ब्लू (Soldier blue movie) 1864 में अमेरिकी फ़्रंटियर के कॉलराडो की सीमा में कर्नल जान एम सिविंगटन के नेतृत्व में हुए भयावह नरसंहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है जहां शयान और अर्फाहो नाम की दो जनजातियों के सुदूरवर्ती गाँवों में एक दिन जब नेटिव इंडियंस एक शांतिपूर्ण दिन बिता रहे होते हैं अचानक अमेरिकी सेना समर्थित घुड़सवारों की टोलियाँ उनपर हमला कर देती हैं।

बिना किसी चेतावनी या पूर्व सूचना के हुए इस हमले से गाँवों के आदिवासी लोग दहल जाते हैं। हमला वीभत्स तरीके से की गई हत्याओं से शुरू होता है और फिर अमेरिकी सेना कई दिनों तक इस सिलसिले को जारी रखती है। नरसंहार में सैकड़ों महिलाओं और बच्चों की भी क्रूरता पूर्ण हत्या की जाती है। इतना ही नहीं महिलाओं का बर्बर तरीके से बलात्कार किया जाता है।

कुछ दिनों में कॉलरोडो के दक्षिण पूर्वी इलाके से लगे सेंड क्रीक (एक छोटी नदी) के पास के गाँवों में हुए इस नरसंहार की वजह से इतिहास में इस क्रूर घटना को ‘सेंड क्रीक नरसंहार’ के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि इस नरसंहार में सैकड़ों सैनिकों के साथ-साथ 150 के क़रीब आम शयानी नागरिकों ने अपनी जान गँवाई। इनमें से दो तिहाई महिलाएँ थी।

 

क्या है सोल्जर ब्लू की कहानी (Story of Solider blue)

क्रेस्टा (Candice Bargen) और हानस (Peter Strauss) शयान (cheyenne) गाँव की ओर जा रहे हैं। मात्र ये दोनों ही ब्रिटिश सेना की तरफ़ से लड़ रहे घुड़सवारों के हमले में बच पाये हैं। इस हमले में 22 लोगों को मार दिया गया। दोनों अपनी जान बचाने के बाद  शयान गाँव में बने बेसकैंप की तरफ जा रहे हैं। हानस एक अमेरिकी सिपाही है जो युद्व की इस संस्कृति को पसंद नहीं करता।

क्रेस्टा दो साल शयान गाँव में रही है। वो अमेरिकी सेना के खिलाफ है। उसे शयान गाँव से एक लगाव है, लेकिन हानस को उसका ये लगाव पसंद नहीं है। क्योंकि मात्र ये दोनों ही नेटिव इंडियंस के द्वारा हुए उस हमले में ज़िंदा बचे हैं तो दोनों साथ-साथ शयान की तरफ़ जा रहे हैं। हानस एक कायर सा लगने वाला आदमी है लेकिन कई बार लगता है कि उसकी ये कायरता असल में उसकी मानवीयता से उपजती है।

ऐसा असल ज़िंदगी में भी होता है कि कई बार मानवीय गुणों से भरा इन्सान कायर समझ लिया जाता है। क्योंकि वो हिंसा में भरोसा नहीं रखता। क्रेस्टा और होनस की इस यात्रा के दौरान दोनों में प्यार की भावना पनपने लगती है। क्रेस्टा को शयान जाकर अपने मंगेतर लेफ़्टिनेंट मेक्नायर से मिलना है। क्रेस्टा एक घुमन्तू सी फितरत की महिला है। वो प्रकृति से जुड़ाव रखती है। प्रकृति से सामन्जस्य बैठाने की क्षमता रखती है पर अकेले इस यात्रा को पूरा कर लेने का माद्दा उसमें नहीं है। इसीलिये वो हानस पर कुछ निर्भर भी है। हालाँकि पूरी फ़िल्म में क्रेस्टावो ज़्यादा हानस के काम आती है न कि हानस उसके।

 

जब अमेरिका से प्यार करने वाले नायक का भरोसा टूटता है

रास्ते में हानस को एक हथियारों से लेस गाड़ी मिलती है। ये हथियार अमेरिकी सेना के विरोधी समूह के हैं। हानस इन हथियारों को नष्ट कर देता है और इस कोशिश में वो ज़ख़्मी हो जाता है। क्रेस्टा उसे जैसे-तैसे बचाने में कामयाब हो जाती है। क्रेस्टा हानस को बताती है कि शयान एक शान्तिपूर्ण गाँव है लेकिन हानस उसकी बात पर भरोसा नहीं करता। वो अमेरिकी सेना के प्रति पूरी निष्ठा रखता है। उसे भरोसा है कि वो ग़लत नहीं कर सकती।

लेकिन शयान पहुँचकर उसका भरोसा बुरी तरह टूटता है। वो देखता है कि शयान जो कि वाकई एक शांतिपूर्ण इलाका है उसे कैसे अमेरिकी सेना नेस्नाबूत कर देती है। कैसे 500 से ज्यादा मासूम लोगों को मार दिया जाता है। कैसे इस मारकाट की विभीषिका में मासूम बच्चे और औरतों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। औरतों का निर्मम बलात्कार करके उन्हें काटकर फेंक दिया जाता है।

 

वियतनाम युद्ध के दौरान रिलीज़ हुई इस फ़िल्म का विरोध

ये फ़िल्म वियतनाम युद्व के दौरान रिलीज़ की गई और इसका ख़ूब विरोध हुआ। बहस उठी कि क्या फ़िल्मों में इतनी हिंसा दिखाना जायज है? फ़िल्म के कुछ दृश्यों में बंदूक की गोली को मांस को बिल्कुल छलनी करता सा दिखाया गया है। औरतों को नग्न करके उनके साथ जबरदस्ती करके उन्हें काटते हुए सेनिकों को दिखाया गया है। सर से अलग होते धड़ और उन्हें हाथ में लेकर अमेरिकी सेनिकों को नाचते हुए दिखाया गया है। क्या इतनी हिंसा का फ़िल्मों में दिखाया जाना सही है?

लेकिन यहां सवाल यही है कि क्या ऐसा असल में हो नहीं रहा। इतना ना सही पर इसके आसपास निर्ममता की सीमाएं क्या नहीं छुईं जा रही? क्या असलियत में युद्व का उन्माद आज की मानवीय सभ्यता से अछूता है? ईराक, गाज़ा, वियतनाम ऐसे कई उदाहरण तो हैं ही हमारे सामने। जब असल में ये सब हुआ है तो अपनी सच्चाई को देखने से परहेज कैसा? अपना आईना देखने में घृणा कैसी?

जिस चीज को अपनी स्क्रीन पर देखने में हमारे रौंगटे खड़े हो जाते हैं उस चीज को असल में होता देख क्या गुज़रती होगी उन मासूम लोगों पर जो उस हिंसा के शिकार बनते हैं। ऐसे उन्मादी हादसों के साक्षी बनने के बाद जो बच जाते होंगे उनके लिये वो यादें किसी बार बार आती भयावह मौत से कम न होती होंगी।

अमेरिका जैसे युद्व प्रेमी देशों को यह समझने में न जाने कितना समय लगेगा। राल्फ नील्सन की सोल्जर ब्लू या स्पिलबर्ग की सिंडलर्स लिस्ट जैसी फ़िल्मों को देख युद्व की संस्कृति के लिए एक घृणा पनपती है। इस घृणा का पनपना और उसका व्यापक हो जाना बड़ा जरुरी है इसलिये कि युद्व न हों, इसलिये कि इन्सान जंगली होने से बचा रह पाये।

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