‘ओल्ड स्कूल’ होकर भी ‘घणी बांवरी’ सी फिल्म – Tanu weds manu returns

Official poster of Tanu weds Manu returns

Last Updated on: 25th July 2025, 12:26 pm

आनंद एल राय निर्देशित तनु वेड्स मनू रिटर्न ( Tanu weds manu returns) का प्रिमाइस रोचक है।

एक शक्ल की दो लड़कियां हैं जिनमें एक ओरिजनल है एक डुब्लिेकेट। अब असल मुद्दा ये है कि जो ऑरिजनल है वो नायक को अब ऑरिजनल नहीं लगती। वो डुब्लिकेट में ऑरिजनल तलाश रहा है। नायक को यहां चाॅइस मिलती है कि वो रिबाॅक पसंद करे या फिर रिब्यूके ?

पर असल सवाल ये है कि क्या ऑरिजनल भी यही रखेंगे और डुब्लिकेट भी ? यहां कोई ईंट से ईंट जोड़ने के लिये सीमेन्ट तलाश रहा है वो चाहे किसी भी कंपनी का हो और कोई बनी बनाई दीवार से ईंटें निकालकर अपने लिये सुकून की खिड़की बना रहा है।

चलिये एक काम करते हैं सारे लाॅजिक किनारे रख देते हैं और घणे बांवरे हो जाते हैं। अब सिनेमा हाॅल में बैठ कर तनु और मनु की शादी के चार साल बाद की कहानी देखते हैं। लाॅजिक में जाएंगे तो तनु वेड्स मनु रिटर्न्स (Tanu weds manu returns) देखते हुए फालतू में फंसेंगे और लाॅजिक वाॅजिक भूल जाएंगे तो पेट पकड़कर हंसेंगे।

ये ठीक वैसा है जैसे बारिश में भीगने से पहले पता हो कि भीगकर बुखार आ सकता है पर आप फिर भी भीगते हैं और इसी भीगने से जिन्दगी के असली मज़े असल मायने में शुरु होते हैं। कई बार बिना ज्यादा लाॅजिक लगाये जीना जि़न्दगी में खास तरह का फ्लेवर डाल देता है।

इसी फ्लेवर को शायद हम मस्ती या मज़ा कहते हैं। तनु वेड्स मनु रिटर्न्स एक ऐसा ही सिनेमाई फ्लेवर है जो आपके ज़हन में चढ़ जाता है और फिर इतनी आसानी से नहीं उतरता।

तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की कहानी (Story of Tanu weds Manu returns)

तनु (Kangna Ranaut) , मनु (R. Madhavan) और पप्पी जी (Deepak Dobriyal) और राजा भैया (Jimi Shergill) को तो आप पहले से ही जानते हैं लेकिन जिसे आप नहीं जानते वो है ‘ओल्ड स्कूल गर्ल’ दत्तो यानी कसुम सांगवान। उसी दत्तो उर्फ कुसुम की जबरदस्त उपस्थिति तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की आत्मा है। यही उसे चार साल पहले आई एल. आनन्द राय की ही तनु वेड्स मनु से एकदम अलग बना देती है।

तो होता ये है तनु और मनु का टूटता हुआ रिश्ता दोनों की जिन्दगी में नये प्यार की सम्भावनाएं ढ़ूंढ़ रहा है। तनु, मन्नू को लन्दन के पागलखाने में छोड़कर अपने मायके कानपुर चली जाती है और पप्पी भैया तनु को ले आते हैं दिन्ली। वहां कानपुर में तनु लाॅ पढ़ रहे चिंटू (Mohd. Zeeshan Ayyub) से मिलती है जो बाद में जाकर तनु का कंधा बन जाता है और इसी कंधे की मदद से तनु मिलती है राजा से।

राजा वही जिससे झटककर मनु ने तनु को 4 साल पहले अपनी जिन्दगी में शामिल कर लिया था। तो यहां तनु के एक्स्ट्रा-मेरिटल अफेयर के चर्चे कानपुर की गलियों में गूंज रहे होते हैं और वहां दिल्ली में मनु मिलते हैं जाट बुद्धि और तनु की हमशक्ल दत्तो यानि कुसुम सांगवान से।

दत्तो से मिलने के बाद उसके प्यार में गिरफ्तार मनु की जिन्दगी कैसे नया मोड़ लेती है और इससे तनु, राजा, चिंटू वगैरह की जिन्दगी के समीकरण कैसे बदलते हैं यही फ़िल्म का कथानक है।

बढ़िया लिखाई अच्छे संवाद

हिमांशु शर्मा की लिखी इस फ़िल्म में न कोई ज़बरदस्त कहानी, न ही कोई अनौखा क्लाइमेक्स पर फ़िल्म की खास बात यही है कि फ़िल्म देखते हुए एक आप एक बार भी घड़ी या फ़ोन नहीं देखते। फ़िल्म के लेखक हिमांशु शर्मा ने जिस तरह के किरदार गढ़े हैं उन सबमें अपना एक खास चार्म है। और उन किरदारों में जब खूबसूरती से लिखे संवादों का तड़का लगता है तो एक मीठी सी गुदगुदी होना स्वाभाविक हो जाता है।

फ़िल्म कई तरह की भाषाओं और भूगोल का घोल दर्शकों के ज़हन को पिलाती है। लेखक दिल्ली के तिलंडी और झंड को लंदन के कोर्ट में समेट लाते हैं, राजस्थान के झज्जर की दत्तो को दिल्ली यूनीवर्सिटी में स्पोर्ट्स कोटे से एडमिशन दिला देते हैं।

रामपुर का चिंटू कानपुर की हाथ से निकल चुकी शादीशुदा लड़की से एकतरफा इश्क फर्माता है और दिल्ली के पप्पी भैया चंडीगड़ की कोमल को अपना दिल मुफ्त में दान कर आते हैं।

कंगना राणावत के दोनों रूप मजेदार

एक तनु है जो लंदन में अपने पति को छोड़-छाड़कर कानपुर लौट आई है और शादी के लिये अपनी बहन को देखने आये रिश्तेदारों के सामने बाथ राॅब पहनकर लड़के को अंग्रेजी में शर्मशार कर देने का माद्दा रखती है और दूसरी दत्तो यानि कुसुम है जो है तो हरियाणा की छोटी सी जगह झज्जर से लेकिन खुद को छेड़ने आये लड़कों को अपनी हाॅकी स्टिक से मज़ा चखा देने का दम उसमें भी है।

कंगना के इन दोनों रुपों में अलग अलग तरह का आकर्षण है। ये दोनों ही रुप भारत के ग्रामीण और शहरी इलाकों की आत्मनिर्भर औरतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये वो औरतें हैं जो हारती नहीं, मज़ा चखाना भी जानती हैं और प्यार करना भीं वो भी इस हद तक कि इसके लिये वो खुद ज़लील होने को भी तैयार हो जाती हैं। उन्हें पा लेना भी आता है और न्यौछावर कर देना भी।

इसमें कोई संदेह ही नहीं हैं कि इस फ़िल्म के बाद कंगना रनौत ने साबित कर दिया है कि वो मौजूदा समय में देश की सबसे बेहतरीन अदाकाराओं में से हैं। इस एक ही फ़िल्म में उनके अभिनय में सराहनीय विविधता देखने को मिल जाती है। निसंदेह इस फ़िल्म का सबसे मजबूत पहलू कंगना ही हैं।

दीपक डोबरियाल हैं फ़िल्म की जान

इसके बाद फ़िल्म के संवाद हैं जो फ़िल्म की कहानी की तमाम कमज़ोरियों के बावजूद उसे कहीं बासी नहीं होने देती। दर्शक को हर दृश्य में ताज़गी का अहसास कराने की अहम जिम्मेदारी फ़िल्म के संवाद अपने कंधों पर बखूबी उठा लेते हैं। दीपक डोबरियाल तो इस फ़िल्म की जान हैं ही। उनका किरदार न होता तो फ़िल्म काफी हद तक फीकी चाय की तरह रह जाती। मोहम्मद जीशान अयूब ने चिंटू की भूमिका में अपनी उपस्थिति का भरपूर अहसास कराया है।

जिमी शेरगिल तो खैर अच्छे कलाकार हैं ही, अवस्थी जी के किरदार को वो भी बखूबी निभाते हैं। पायल के किरदार में स्वरा भास्कर (Swara Bhasker) के लिये इस फ़िल्म में कोई खास सम्भावनाएं नहीं थी फिर भी आप उन्हें नज़रअंदाज नहीं कर पाते तो ये उनकी काबिलियत ही है। आर. माधवन के पास करने के लिये कुछ नया-ताज़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी वो अपने किरदार के सादेपन से लुभाते हैं।

फ़िल्म के गानों की भाषा और टोन एकदम अलग

फ़िल्म के गानों की भाषा और टोन दोनों के बीच जो कॉन्ट्रास्ट है वो उन्हें एकदम ताज़ा कर देता है. कहीं  ‘पिया’ को ‘मूव ऑन’ करने की नसीहतें हैं,  तो कहीं ‘घणी बांवरी’ जैसे एकदम ग्रामीण लोक संस्कृति के शब्द हैं. फोक के साथ हिंगलिश शब्दों का ये समन्वय फ़िल्म के संगीत और फ़िल्म की कहानी के बीच एक कर्णप्रिय सामंजस्य बना देता है.  गीतकार राज शेखर और म्यूज़िक डाइरेक्टर कृष्णा सोलो के बीच की ये जुगलबंदी  फ़िल्म की सफलता का एक अहम हिस्सा है.

कभी कभी कहीं जाना नहीं होता फिर भी बस के धक्के खाने का मन करता है। तनु वेड्स मनू रिटर्न्स (Tanu weds Manu returns ) वही बस है जो आपको कहीं ले तो नहीं जाती पर उसके धक्के खाना आपको अच्छा लगता है। तो भाई चढ़ जा बस ने और ले ले मज़े। सुन रिया है ना तू ? वरना ‘वो देख कबूतर’.

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